Kamakhya devi temple

कामाख्या देवी मंदिर इतना प्रसिद्ध क्यों है?

कामाख्या देवी मंदिर, असम की राजधानी गुवाहाटी के नीलाचल पर्वत पर स्थित है और भारत के सबसे पवित्र शक्तिपीठों में से एक है। यह प्राचीन मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है, जो स्त्री शक्ति और प्रजनन का प्रतीक मानी जाती हैं। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहाँ एक पवित्र योनि (गर्भ) की पूजा की जाती है, जिसे शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

कामाख्या देवी मंदिर की प्राचीन कथाएँ


कामाख्या मंदिर कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है, जो इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर माता सती की कथा से संबंधित है। जब सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण आत्मदाह कर लिया, तो भगवान शिव ने उनके शरीर को लेकर संपूर्ण ब्रह्मांड में भ्रमण किया। इस दौरान, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए, जो विभिन्न स्थानों पर गिरे और शक्तिपीठ कहलाए। कामाख्या मंदिर वह स्थान है, जहां सती का योनि भाग गिरा था, जो स्त्री शक्ति और प्रजनन का प्रतीक है।

कामदेव की कथा और कामाख्या मंदिर का निर्माण


हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कामदेव, जो प्रेम और आकर्षण के देवता हैं, ने भगवान शिव को माता सती के निधन के बाद फिर से प्रेम की ओर प्रेरित करने की कोशिश की थी। जब माता सती का देहांत हुआ, तो भगवान शिव ने संसार से दूरी बना ली और ध्यान में लीन हो गए। देवताओं की प्रार्थना पर, कामदेव ने शिवजी के ध्यान को भंग करने के लिए अपना प्रेम बाण चलाया। क्रोधित होकर शिवजी ने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया। बाद में, देवी रति (कामदेव की पत्नी) के अनुरोध पर शिवजी ने उन्हें पुनर्जीवित किया, लेकिन उन्होंने पहले अपनी शक्ति वापस पाने के लिए देवी शक्ति की तपस्या की। कहा जाता है कि उन्होंने नीलाचल पर्वत पर देवी की आराधना की, जिससे देवी प्रसन्न हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। यही कारण है कि इस स्थान को प्रेम, इच्छा और शक्ति का केंद्र माना जाता है और यह मंदिर कामदेव की तपस्या का स्थल भी कहा जाता है।

कामाख्या मंदिर में निभाई जाने वाली प्रमुख परंपराएँ

कामाख्या देवी मंदिर में कुछ अनूठी परंपराएँ निभाई जाती हैं, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं:

  • अंबुबाची मेला: यह सबसे महत्वपूर्ण उत्सवों में से एक है, जो देवी कामाख्या के वार्षिक रजस्वला होने का प्रतीक है। इस दौरान मंदिर तीन दिनों तक बंद रहता है और देवी के शुद्धिकरण के बाद बड़े उत्सव के साथ पुनः खोला जाता है।

  • तांत्रिक पूजा: यह मंदिर तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहाँ तांत्रिक पूजा और साधना की जाती है, जिससे आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने में मदद मिलती है।

  • लाल कपड़े का अर्पण: इस मंदिर में श्रद्धालु लाल रंग के वस्त्र, फूल और सिंदूर चढ़ाकर देवी से मनोकामनाएँ पूरी होने की प्रार्थना करते हैं।

कामाख्या देवी मंदिर कहाँ स्थित है?

यह मंदिर असम के गुवाहाटी में नीलाचल पर्वत पर स्थित है और ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित होने के कारण इसकी भव्यता और धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।

कामाख्या देवी मंदिर कैसे पहुँचे?

गुवाहाटी भारत के प्रमुख शहरों से हवाई, रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है:

  • हवाई मार्ग से: नजदीकी हवाई अड्डा लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 20 किमी दूर है। यहाँ से टैक्सी और स्थानीय वाहन उपलब्ध हैं।

  • रेल मार्ग से: गुवाहाटी रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 8 किमी दूर है। यहाँ से ऑटो, टैक्सी या बस से मंदिर जाया जा सकता है।

  • सड़क मार्ग से: गुवाहाटी राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा हुआ है और यहाँ से टैक्सी एवं बसें आसानी से उपलब्ध हैं।

दिल्ली से कामाख्या देवी मंदिर की दूरी

दिल्ली से कामाख्या देवी मंदिर की दूरी लगभग 1,900 किमी है। आप गुवाहाटी पहुँचने के लिए निम्नलिखित विकल्प चुन सकते हैं:

  • हवाई जहाज से: लगभग 2.5 घंटे में पहुँच सकते हैं।

  • रेल मार्ग से: लगभग 30-35 घंटे लगते हैं।

  • सड़क मार्ग से: सड़क मार्ग से यात्रा करने में लगभग 35-40 घंटे लग सकते हैं।

कामाख्या मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय

कामाख्या मंदिर की यात्रा का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच होता है। इस समय मौसम सुहावना रहता है, जिससे यात्रा आरामदायक होती है। इसके अलावा, अंबुबाची मेला (जून में) और दुर्गा पूजा (सितंबर-अक्टूबर में) के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, जो मंदिर की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भव्यता को देखने के लिए एक बेहतरीन अवसर हो सकता है।

गुवाहाटी में चखने योग्य प्रसिद्ध शाकाहारी भोजन

कामाख्या मंदिर यात्रा के दौरान यहाँ के स्वादिष्ट असमिया व्यंजन जरूर आज़माएँ:

  • असमिया थाली: इसमें चावल, दाल, बैंगन भाजा, आलू पिटिका और पारंपरिक असमिया मिठाई शामिल होती है।

  • पिठा: नारियल और गुड़ से बना पारंपरिक असमिया मिठाई वाला व्यंजन।

  • घीया खार: लौकी और मसालों से बना एक पारंपरिक असमिया व्यंजन।

  • तिल पिठा: चावल के आटे और तिल से तैयार किया गया एक पारंपरिक स्नैक।

  • असमिया चाय: अपनी मजबूत सुगंध और स्वाद के लिए प्रसिद्ध, यह चाय यहाँ की पहचान है।

निष्कर्ष

कामाख्या देवी मंदिर आध्यात्मिकता, इतिहास और संस्कृति का अनोखा संगम है। इसकी प्राचीन कथाएँ, अनोखी परंपराएँ और शानदार स्थान इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बनाते हैं। चाहे आप देवी के आशीर्वाद की तलाश में हों, पौराणिक कथाओं की खोज कर रहे हों या असमिया व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते हों, कामाख्या मंदिर आपकी यात्रा को अविस्मरणीय बना देगा।

 

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